विश्लेषण: क्या विधानसभा चुनाव में हार के डर से चुनाव आयोग पर आरोप लगा रहे थे कमलनाथ
Friday - October 12, 2018 2:21 pm ,
Category : WTN HINDI

कमलनाथ और चुनाव आयोग में तक़रार
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ और कांग्रेस की किरकिरी
OCT 12 (WTN) – मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने फर्ज़ी मतदाता सूची मामले में कमलनाथ की याचिका को ख़ारिज कर दिया है। इस मामले में कोर्ट का साफ़ कहना है कि वोटर लिस्ट की समीक्षा नहीं की जाएगी। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर दाख़िल पूर्व केन्द्रीय मंत्री सचिन पायलट की याचिका को भी ख़ारिज कर दिया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में बोगस वोटर लिस्ट का आरोप लगया था और इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी।
कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि चुनाव आयोग को मध्य प्रदेश के इलेक्टोरल रोल पीडीएफ़ फॉर्मेट की जगह एमएस वर्ड फाइल में जारी करने के निर्देश दिए जाएं। साथ ही इनकी मांग थी कि रैंडम वीवीपैट वेरिफिकेशन किए जाएं। कांग्रेस की इस अपील का चुनाव आयोग ने जोरदार तरीक़े से विरोध किया था।
इस पूरे मामले की सुनवाई में कमलनाथ की याचिका पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि फ़ोटो के साथ 13 मतदाताओं की सूची आयोग को नहीं दी गई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि लिस्ट में फ़ोटो ग़लत थी या फ़िर मतदाता ही फर्ज़ी थे। कमलनाथ के वकील कपिल सिब्बल के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के इस प्रश्न पर चुनाव आयोग ने कोई उत्तर नहीं दिया था।
वहीं चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया था कि पहली मतदाता सूची इस साल जनवरी में ड्राफ्ट हो गयी थी। जिसे बाद में मई में संशोधित किया गया था। चुनाव आयोग का कहना था कि मतदाता सूची ठीक कर दी गई है और कांग्रेस कोर्ट से अपने पक्ष में फ़ैसला चाहती है। चुनाव आयोग की बात पर कांग्रेस ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि चुनाव आयोग यह कैसे कह सकता है कि हमारे ख़िलाफ़ कार्रवाई हो, जबकि खुद चुनाव आयोग ने ही यह लिस्ट दी है।
वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ ने याचिका लगाई थी कि विधानसभा चुनाव में दस प्रतिशत पोलिंग बूथों पर वीवीपीएटी का औचक परीक्षण किया जाए। जिस पर चुनाव आयोग ने कहा था कि वीवीपीएटी सभी बूथों पर रहेगी, लेकिन कहां पर औचक निरीक्षण हो ये चुनाव आयोग का अधिकार है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इससे पहले चुनाव आयोग ने कमलनाथ पर कोर्ट में फ़र्जी दस्तावेज देकर उसके सहारे अपने पक्ष का आदेश लेने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। चुनाव आयोग ने कहा था कि ऐसा करना आईपीसी की धारा 193 के तहत दण्नीय अपराध है, जिसमें सात साल की कैद हो सकती है।
चुनाव आयोग ने कमलनाथ की ओर से दिए गए दस्तावेज पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इस दस्तावेज में कहा गया है कि एक ही नाम की समान 17 महिलाएं मतदाता सूची में दर्ज हैं। एक निजी वेबसाइट से निकाले गए इस दस्तावेज की आयोग ने जांच की और मतदाता सूची से फ़ोटो मिलाकर पाया कि एक समान नाम वाली सभी महिलाएं अलग-अलग हैं और वे वास्तविक मतदाता हैं। इस मामले में कमलनाथ की ओर से आरोपों का विरोध करते हुए कहा गया था कि उन्होंने दस्तावेजों का फ़र्जीवाड़ा नहीं किया है और जो दस्तावेज उन्होंने दिए हैं वो सार्वजनिक हैं।
आख़िरकार सुप्रीर्म कोर्ट ने कमलनाथ की याचिका को ख़ारिज कर दिया है जिसके बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में बयानों का दौर शुरू होने वाला है। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद कांग्रेस को कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी क़रारी हार का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद समय-समय पर कांग्रेस ने भाजपा पर ईवीएम सेटिंग का आरोप लगाया था, लेकिन कमलनाथ और सचिन पायलट ने सीधे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिये, जिसके बाद चुनाव आयोग ने साफ़ कर दिया था कि उसे संविधान से कुछ विशेषाधिकार मिले हैं जिन पर कांग्रेस नेता टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।
समय-समय पर चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करके कांग्रेस ने खुद की विश्वसनीयता कम की है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके काम में किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी हस्तक्षेप नहीं होता है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब भाजपा जोर शोर से प्रचार करेगी की कमलनाथ ने चुनाव आयोग पर ग़लत आरोप लगाए थे जिसके कारण चुनाव आयोग जैसी संस्था की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे थे।
अब जब कमलनाथ जनता के बीच जाएंगे तो उन्हें इस सवाल का जवाब तो देना ही होगा कि आख़िर किस आधार पर वे चुनाव आयोग पर आरोप लगा रहे थे, क्या कांग्रेस को हार का ख़तरा पहले से ही हो गया है इसलिए कांग्रेस कोई बहाना ढूंढ रही थी। कुछ दिनों पहले कांग्रेस समर्थित न्यूज़ वेबसाइट नेशनल हेराल्ड ने भी एक सर्वे के हवाला देते हुए लिखा था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस हार सकती है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि सम्भावित हार को देखते हुए कांग्रेस ने मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप पहले से ही तैयार रखा है ताकि हार के बाद बचाव किया जा सके।
OCT 12 (WTN) – मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने फर्ज़ी मतदाता सूची मामले में कमलनाथ की याचिका को ख़ारिज कर दिया है। इस मामले में कोर्ट का साफ़ कहना है कि वोटर लिस्ट की समीक्षा नहीं की जाएगी। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर दाख़िल पूर्व केन्द्रीय मंत्री सचिन पायलट की याचिका को भी ख़ारिज कर दिया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में बोगस वोटर लिस्ट का आरोप लगया था और इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी।
कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि चुनाव आयोग को मध्य प्रदेश के इलेक्टोरल रोल पीडीएफ़ फॉर्मेट की जगह एमएस वर्ड फाइल में जारी करने के निर्देश दिए जाएं। साथ ही इनकी मांग थी कि रैंडम वीवीपैट वेरिफिकेशन किए जाएं। कांग्रेस की इस अपील का चुनाव आयोग ने जोरदार तरीक़े से विरोध किया था।
इस पूरे मामले की सुनवाई में कमलनाथ की याचिका पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि फ़ोटो के साथ 13 मतदाताओं की सूची आयोग को नहीं दी गई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि लिस्ट में फ़ोटो ग़लत थी या फ़िर मतदाता ही फर्ज़ी थे। कमलनाथ के वकील कपिल सिब्बल के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के इस प्रश्न पर चुनाव आयोग ने कोई उत्तर नहीं दिया था।
वहीं चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया था कि पहली मतदाता सूची इस साल जनवरी में ड्राफ्ट हो गयी थी। जिसे बाद में मई में संशोधित किया गया था। चुनाव आयोग का कहना था कि मतदाता सूची ठीक कर दी गई है और कांग्रेस कोर्ट से अपने पक्ष में फ़ैसला चाहती है। चुनाव आयोग की बात पर कांग्रेस ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि चुनाव आयोग यह कैसे कह सकता है कि हमारे ख़िलाफ़ कार्रवाई हो, जबकि खुद चुनाव आयोग ने ही यह लिस्ट दी है।
वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ ने याचिका लगाई थी कि विधानसभा चुनाव में दस प्रतिशत पोलिंग बूथों पर वीवीपीएटी का औचक परीक्षण किया जाए। जिस पर चुनाव आयोग ने कहा था कि वीवीपीएटी सभी बूथों पर रहेगी, लेकिन कहां पर औचक निरीक्षण हो ये चुनाव आयोग का अधिकार है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इससे पहले चुनाव आयोग ने कमलनाथ पर कोर्ट में फ़र्जी दस्तावेज देकर उसके सहारे अपने पक्ष का आदेश लेने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। चुनाव आयोग ने कहा था कि ऐसा करना आईपीसी की धारा 193 के तहत दण्नीय अपराध है, जिसमें सात साल की कैद हो सकती है।
चुनाव आयोग ने कमलनाथ की ओर से दिए गए दस्तावेज पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इस दस्तावेज में कहा गया है कि एक ही नाम की समान 17 महिलाएं मतदाता सूची में दर्ज हैं। एक निजी वेबसाइट से निकाले गए इस दस्तावेज की आयोग ने जांच की और मतदाता सूची से फ़ोटो मिलाकर पाया कि एक समान नाम वाली सभी महिलाएं अलग-अलग हैं और वे वास्तविक मतदाता हैं। इस मामले में कमलनाथ की ओर से आरोपों का विरोध करते हुए कहा गया था कि उन्होंने दस्तावेजों का फ़र्जीवाड़ा नहीं किया है और जो दस्तावेज उन्होंने दिए हैं वो सार्वजनिक हैं।
आख़िरकार सुप्रीर्म कोर्ट ने कमलनाथ की याचिका को ख़ारिज कर दिया है जिसके बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में बयानों का दौर शुरू होने वाला है। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद कांग्रेस को कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी क़रारी हार का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद समय-समय पर कांग्रेस ने भाजपा पर ईवीएम सेटिंग का आरोप लगाया था, लेकिन कमलनाथ और सचिन पायलट ने सीधे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिये, जिसके बाद चुनाव आयोग ने साफ़ कर दिया था कि उसे संविधान से कुछ विशेषाधिकार मिले हैं जिन पर कांग्रेस नेता टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।
समय-समय पर चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करके कांग्रेस ने खुद की विश्वसनीयता कम की है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके काम में किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी हस्तक्षेप नहीं होता है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब भाजपा जोर शोर से प्रचार करेगी की कमलनाथ ने चुनाव आयोग पर ग़लत आरोप लगाए थे जिसके कारण चुनाव आयोग जैसी संस्था की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे थे।
अब जब कमलनाथ जनता के बीच जाएंगे तो उन्हें इस सवाल का जवाब तो देना ही होगा कि आख़िर किस आधार पर वे चुनाव आयोग पर आरोप लगा रहे थे, क्या कांग्रेस को हार का ख़तरा पहले से ही हो गया है इसलिए कांग्रेस कोई बहाना ढूंढ रही थी। कुछ दिनों पहले कांग्रेस समर्थित न्यूज़ वेबसाइट नेशनल हेराल्ड ने भी एक सर्वे के हवाला देते हुए लिखा था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस हार सकती है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि सम्भावित हार को देखते हुए कांग्रेस ने मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप पहले से ही तैयार रखा है ताकि हार के बाद बचाव किया जा सके।