क्या ऑटोमोबाइल कम्पनियों के आगे झुक गई सरकार?
Tuesday - June 18, 2019 3:17 pm ,
Category : WTN HINDI

इलेक्ट्रिक वाहनों के मामलों में ‘बैकफुट’ पर सरकार
अब 2030 के बाद इलेक्ट्रिक वाहन बेचने की नीति होगी लागू!
JUNE 18 (WTN) – गाड़ियों से निकलने वाला जहरीला धुंआ भारत में तेज़ी से फैल रहे वायु प्रदूषण के लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है। वहीं पेट्रोल और डीज़ल को आयात करने में देश को एक बड़ी विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ती है। इन दोनों ही समस्याओं से निजात पाने के लिए सरकार एक ठोस उपाय करने जा रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकार की कोशिश है कि जल्द से जल्द देश में ज़्यादा से ज़्यादा इलेक्ट्रिक वाहन चलाएं जाएं। लेकिन लगता है कि देश की ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया है, जिसके कारण इलेक्ट्रिक वाहन की नीति जल्द लागू होती नहीं दिख रही है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पहले सरकार की योजना थी कि 150 सीसी से कम क्षमता वाले सभी तिपहिया और दोपहिया वाहनों को क्रमश: 2023 और 2025 तक इलेक्ट्रिक में बदल दिया जाए। लेकिन कहा जा रहा है कि ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी के दबाव के कारण नीति आयोग की राय है कि अब साल 2030 के बाद देश में केवल इलेक्ट्रिक 2 और 3 पहिया वाहन चलाए जाएं।
नीति आयोग की बैठक में पहले जिस प्रस्ताव पर चर्चा हुई है, उसके मुताबिक़ साल 2025 से 150 सीसी इंजन तक की दो पहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियां बाज़ार में उतारी जाएंगी। नीति आयोग के इस प्रस्ताव को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के पास भेज दिया गया था। लेकिन ऑटोमोबाइल उद्योग की लॉबिंग का ही नतीजा है कि अब रोड ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी इलेक्ट्रिक व्हीकल नीति को लागू करने के लिए बनने वाले रोडमैप को ऑटो इंडस्ट्री की सलाह से तैयार करने की बात कह रहे हैं।
अब सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने साल 2030 के बाद पेट्रोल और डीज़ल वाहनों की बिक्री को रोकने के लिए एक योजना तैयार करने का प्रस्ताव रखा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मंत्रालय साल 2030 तक 50 गीगावाट बैटरी बनाने की योजना पर भी काम करना चाहता है। अब सरकार की योजना है कि 2030 के बाद ज़्यादा से ज़्यादा इलेक्ट्रिक दो और तीन पहिया वाहन चलाए जाएं।
दरअसल, जल्दबादी में सरकार की इस पहल का ऑटोमोबाइल उद्योग की ओर से ज़ोरदार तरीक़े से विरोध किया जा रहा था, जिसके बाद सरकार बैकफुट पर आ गई है। ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी पूरी कोशिश कर रहा था कि देश में 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन योजना को आनन फानन में लागू नहीं किया जाए। लॉबी का नीति आयोग पर आरोप था कि आयोग सभी से विचार विमर्श किये बिना ही इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में जल्दबाज़ी कर रहा था।
दरअसल, भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी विभिन्न वाहन वर्गों में तय समय सीमा के अन्दर इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने की सरकार की प्रस्तावित योजना का जमकर विरोध कर रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दोपहिया और तिपहिया वाहनों का भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत में 2,11,81,390 दोपहिया और 7,01,011 तिपहिया वाहन बिके थे। इतनी बड़ी तादात में दोपहिया और तिपहिया पेट्रोल और डीज़ल वाहनों की बिक्री के कारण ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी सरकार के ख़िलाफ़ आ गई है।
हालांकि, अधिकांश वाहन कम्पनियां स्वच्छ प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की सरकार की पहल पर सैद्धांतिक रूप से तो सहमत हैं, और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए निवेश करने की इच्छुक हैं। लेकिन कम्पनियां इसे चरणबद्ध तरीक़े से लागू करना चाहती हैं ताकि वाहन उद्योग को इस परिवर्तन से किसी भी तरह की परेशान का सामना ना करना पड़े।
वहीं ऑटोमोबाइल उद्योग को आशंका है कि दोपहिया और तिपहिया वर्ग में हड़बड़ी में इलेक्ट्रिक वाहन नीति अपनाने से वाहनों के लिए कलपुर्जे बनाने वाला उद्योग मुसीबत में आ सकता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वाहनों के कलपुर्जे बनाने में भारत में छोटी और मझोली कम्पनियां का दबदबा है और यह उद्योग कुल 55 अरब डॉलर का है, जिसमें क़रीब 30 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ है।
ऑटोमोबाइल उद्योग का इलेक्ट्रिक गाड़ियों को जल्द से जल्द मार्केट में लाने के पीछे विरोध यह है कि उनका कहना है कि देश में इस समय पेट्रोल और डीज़ल गाड़ियों की कम बिक्री हो रही है जिससे वाहन उद्योग परेशान है। वहीं दूसरी ओर बीएस-चार से बीएस-छह उत्सर्जन मानक अपनाने की समय सीमा का भी सामना ऑटोमोबाइल उद्योग को करना पड़ रहा है। यदि आनन-फानन में इलेक्ट्रिक वाहन की नीति को अपनाया गया तो इससे बीएस-छह व्यवस्था के लिए किए जा रहे 50 हजार करोड़ रुपये के निवेश पर सवालिया निशान लग जाएंगे।
वाहन लॉबी का कहना है कि सरकार कोई भी फ़ैसला लेने से पहले सभी पक्षों से अच्छी तरीक़े से विचार विमर्श करे। क्योंकि यदि सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया गाड़ियों के बारे में एकपक्षीय फ़ैसला ले लिया तो इससे पेट्रोल-डीज़ल वाहनों के कलपुर्जा बनाने वाले उद्योग बंद हो जाएंगे जिससे लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे।
यानी कि साफ़ है कि ऑटोमोबाइल उद्योग की लॉबिंग के कारण ही इलेक्ट्रिक व्हीकल नीति ठण्डे बस्ते में चली गई है। यह बात सही है कि बढ़ते प्रदूषण के कारण समय की मांग है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाए। लेकिन ऑटोमोबाइल कम्पनियों की मांग है कि इसे धीरे-धीरे और चरणबद्ध तरीक़े से स्वैच्छिक रूप से लागू किया जाए, जिससे ऑटोमोबाइल कम्पनियों के साथ-साथ इनके कलपुर्जे बनाने वाली कम्पनियों को भी कोई नुकसान ना हो।
JUNE 18 (WTN) – गाड़ियों से निकलने वाला जहरीला धुंआ भारत में तेज़ी से फैल रहे वायु प्रदूषण के लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है। वहीं पेट्रोल और डीज़ल को आयात करने में देश को एक बड़ी विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ती है। इन दोनों ही समस्याओं से निजात पाने के लिए सरकार एक ठोस उपाय करने जा रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकार की कोशिश है कि जल्द से जल्द देश में ज़्यादा से ज़्यादा इलेक्ट्रिक वाहन चलाएं जाएं। लेकिन लगता है कि देश की ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया है, जिसके कारण इलेक्ट्रिक वाहन की नीति जल्द लागू होती नहीं दिख रही है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पहले सरकार की योजना थी कि 150 सीसी से कम क्षमता वाले सभी तिपहिया और दोपहिया वाहनों को क्रमश: 2023 और 2025 तक इलेक्ट्रिक में बदल दिया जाए। लेकिन कहा जा रहा है कि ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी के दबाव के कारण नीति आयोग की राय है कि अब साल 2030 के बाद देश में केवल इलेक्ट्रिक 2 और 3 पहिया वाहन चलाए जाएं।
नीति आयोग की बैठक में पहले जिस प्रस्ताव पर चर्चा हुई है, उसके मुताबिक़ साल 2025 से 150 सीसी इंजन तक की दो पहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियां बाज़ार में उतारी जाएंगी। नीति आयोग के इस प्रस्ताव को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के पास भेज दिया गया था। लेकिन ऑटोमोबाइल उद्योग की लॉबिंग का ही नतीजा है कि अब रोड ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी इलेक्ट्रिक व्हीकल नीति को लागू करने के लिए बनने वाले रोडमैप को ऑटो इंडस्ट्री की सलाह से तैयार करने की बात कह रहे हैं।
अब सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने साल 2030 के बाद पेट्रोल और डीज़ल वाहनों की बिक्री को रोकने के लिए एक योजना तैयार करने का प्रस्ताव रखा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मंत्रालय साल 2030 तक 50 गीगावाट बैटरी बनाने की योजना पर भी काम करना चाहता है। अब सरकार की योजना है कि 2030 के बाद ज़्यादा से ज़्यादा इलेक्ट्रिक दो और तीन पहिया वाहन चलाए जाएं।
दरअसल, जल्दबादी में सरकार की इस पहल का ऑटोमोबाइल उद्योग की ओर से ज़ोरदार तरीक़े से विरोध किया जा रहा था, जिसके बाद सरकार बैकफुट पर आ गई है। ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी पूरी कोशिश कर रहा था कि देश में 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन योजना को आनन फानन में लागू नहीं किया जाए। लॉबी का नीति आयोग पर आरोप था कि आयोग सभी से विचार विमर्श किये बिना ही इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में जल्दबाज़ी कर रहा था।
दरअसल, भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी विभिन्न वाहन वर्गों में तय समय सीमा के अन्दर इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने की सरकार की प्रस्तावित योजना का जमकर विरोध कर रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दोपहिया और तिपहिया वाहनों का भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत में 2,11,81,390 दोपहिया और 7,01,011 तिपहिया वाहन बिके थे। इतनी बड़ी तादात में दोपहिया और तिपहिया पेट्रोल और डीज़ल वाहनों की बिक्री के कारण ऑटोमोबाइल उद्योग लॉबी सरकार के ख़िलाफ़ आ गई है।
हालांकि, अधिकांश वाहन कम्पनियां स्वच्छ प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की सरकार की पहल पर सैद्धांतिक रूप से तो सहमत हैं, और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए निवेश करने की इच्छुक हैं। लेकिन कम्पनियां इसे चरणबद्ध तरीक़े से लागू करना चाहती हैं ताकि वाहन उद्योग को इस परिवर्तन से किसी भी तरह की परेशान का सामना ना करना पड़े।
वहीं ऑटोमोबाइल उद्योग को आशंका है कि दोपहिया और तिपहिया वर्ग में हड़बड़ी में इलेक्ट्रिक वाहन नीति अपनाने से वाहनों के लिए कलपुर्जे बनाने वाला उद्योग मुसीबत में आ सकता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वाहनों के कलपुर्जे बनाने में भारत में छोटी और मझोली कम्पनियां का दबदबा है और यह उद्योग कुल 55 अरब डॉलर का है, जिसमें क़रीब 30 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ है।
ऑटोमोबाइल उद्योग का इलेक्ट्रिक गाड़ियों को जल्द से जल्द मार्केट में लाने के पीछे विरोध यह है कि उनका कहना है कि देश में इस समय पेट्रोल और डीज़ल गाड़ियों की कम बिक्री हो रही है जिससे वाहन उद्योग परेशान है। वहीं दूसरी ओर बीएस-चार से बीएस-छह उत्सर्जन मानक अपनाने की समय सीमा का भी सामना ऑटोमोबाइल उद्योग को करना पड़ रहा है। यदि आनन-फानन में इलेक्ट्रिक वाहन की नीति को अपनाया गया तो इससे बीएस-छह व्यवस्था के लिए किए जा रहे 50 हजार करोड़ रुपये के निवेश पर सवालिया निशान लग जाएंगे।
वाहन लॉबी का कहना है कि सरकार कोई भी फ़ैसला लेने से पहले सभी पक्षों से अच्छी तरीक़े से विचार विमर्श करे। क्योंकि यदि सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया गाड़ियों के बारे में एकपक्षीय फ़ैसला ले लिया तो इससे पेट्रोल-डीज़ल वाहनों के कलपुर्जा बनाने वाले उद्योग बंद हो जाएंगे जिससे लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे।
यानी कि साफ़ है कि ऑटोमोबाइल उद्योग की लॉबिंग के कारण ही इलेक्ट्रिक व्हीकल नीति ठण्डे बस्ते में चली गई है। यह बात सही है कि बढ़ते प्रदूषण के कारण समय की मांग है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाए। लेकिन ऑटोमोबाइल कम्पनियों की मांग है कि इसे धीरे-धीरे और चरणबद्ध तरीक़े से स्वैच्छिक रूप से लागू किया जाए, जिससे ऑटोमोबाइल कम्पनियों के साथ-साथ इनके कलपुर्जे बनाने वाली कम्पनियों को भी कोई नुकसान ना हो।