चीन की 'क़र्ज़ कूटनीति' में फंसते जा रहे ग़रीब और ज़रूरतमंद देश
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150 से ज़्यादा देश हो चुके हैं चीन के क़र्ज़दार
AUG 31 (WTN) - वैसे तो आप चीन की विस्तारवाद की नीति को जानते ही होंगे। जहां तक चीन के पड़ोसी देशों की बात है, तो चीन के अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद हैं। लेकिन, विस्तारवादी मानसिकता वाली चीन की वामपंथी सरकार अब पड़ोसी देशों के अलावा आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों पर अप्रत्यक्ष रूप से आधिपत्य जमाने के लिए डेथ-ट्रैप डिप्लोमेसी (Debt-Trap Diplomacy) पर काम कर रही है।
दरअसल, चीन द्वारा किसी देश को क़र्ज़ देने और उसे अप्रत्यक्ष रूप से अपने आधिपत्य में करने की पुरानी परंपरा रही है। अपनी इस नीति के तहत, चीन पहले तो इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर किसी देश को क़र्ज़ देता है। और फिर क़र्ज़ नहीं चुका पाने पर उस देश के संसाधनों का दोहन करने लगता है। वहीं, ग़रीब देशों को क़र्ज़ देकर चीन उनके यहां की खदानों या बंदरगाहों को लीज पर ले लेता है। इतना ही नहीं, चीन की वामपंथी सरकार उस देश की आंतरिक और विदेश नीति को ख़ुद नियंत्रित करने लगती है, और उसका इस्तेमाल ख़ुद के फायदे और अपने दुश्मन और प्रतिद्वंद्वी देश के ख़िलाफ़ करने लगती है।
अपनी इस डेथ-ट्रैप डिप्लोमेसी का इस्तेमाल चीन, भारत के पड़ोसी देशों के ख़िलाफ़ सफलतापूर्वक कर चुका है जिससे वो भारत को घेरने में सफल हो सके। अपनी इस डिप्लोमेसी के तहत चीन, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल को तो फंसा ही चुका है। वहीं, चीन की नज़र अब बांग्लादेश और म्यांमार पर भी है। ख़ैर, जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो पाकिस्तान पूरी तरह से चीन की क़र्ज़ डिप्लोमेसी में फंस चुका है।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि चीन, पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानि CPEC तैयार कर रहा है, और इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए चीन 80 प्रतिशत से ज़्यादा पैसा ख़र्च कर रहा है। दरअसल, अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के ज़रिए चीन ने पाकिस्तान में पूरी तरह से घुसपैठ कर ली है। IMF (International Monetary Fund) यानि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, साल 2022 तक पाकिस्तान को चीन को 6.7 अरब डॉलर का क़र्ज़ चुकाना है। अब पहले से ही ग़रीब देश पाकिस्तान, चीन के इस भारी भरकम क़र्ज़ को शायद ही चुका पाए। ऐसे में चीन धीरे-धीरे पाकिस्तान के संसाधनों का दोहन करता जा रहा है।
वहीं, जहां तक श्रीलंका की बात है, तो चीन से धोखा खाने के बाद श्रीलंका, 'इंडिया फर्स्ट' की नीति पर चल पड़ा है। दरअसल, श्रीलंका अपने महत्वपूर्ण बंदरगाह हंबनटोटा को चीन को लीज पर देने के बाद से पछता रहा है। बता दें कि श्रीलंका के वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के 10 सालों तक राष्ट्रपति रहते हुए श्रीलंका पर काफी क़र्ज़ चढ़ गया है, और इस क़र्ज़ में एक बड़ा हिस्सा चीन का है। श्रीलंका पर चीन का इतना क़र्ज़ चढ़ता गया कि उसे अपने महत्वपूर्ण बंदरगाह हंबनटोटा को पूरे 99 सालों के लिए चीन को लीज पर देना पड़ा है। इतना ही नहीं, श्रीलंका को भारत की सीमा से लगी लगभग 15 हज़ार एकड़ ज़मीन को भी चीन को देना पड़ा है।
पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह नेपाल भी चीन की क़र्ज़ नीति में फंस चुका है। नेपाल की चीन में इतनी ज़्यादा घुसपैठ हो चुकी है कि चीन अब नेपाल की आंतरिक, आर्थिक और कूटनीतिक नीतियों को तय करने लगा है। इसी कड़ी में चीन की वर्तमान राजदूत की चीन के आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी किसी से छिपी नहीं है।
यह तो थी चीन की अपने पड़ोसी देशों के साथ की जा रही क़र्ज़ कूटनीति। वहीं, इसी तरह से चीन ने अफ्रीकी देशों में भी क़र्ज़ देकर बड़ा निवेश किया हुआ है। दरअसल, अफ्रीका के ज़्यादातर देश ग़रीब हैं। ऐसे में विकास के नाम पर चीन इन ग़रीब देशों की मदद कर उन्हें भी अपनी क़र्ज़ कूटनीति में फंसा रहा है। हालांकि, अपने ऊपर लग रहे आरोपों पर चीन का कहना है कि वो ग़रीब और ज़रुरतमंद देशों की क़र्ज़ देकर मदद इसलिए कर रहा है जिससे वे विकास कर सकें।
दरअसल, चीन की वामपंथी सरकार का तर्क है कि अपनी इसी तरह की एक पॉलिसी के तहत वो पहले छोटे कम्युनिस्ट देशों को क़र्ज़ दिया करता था। लेकिन, अब वो उन सभी देशों को क़र्ज़ दे रहा है जिन्हें इनकी ज़रूरत है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की सरकार और चीनी कंपनियों ने 150 से ज़्यादा देशों को लगभग 112 लाख 50 हज़ार करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया हुआ है। साफ है कि चीन अपनी डेथ-ट्रैप डिप्लोमेसी के ज़रिए एशिया के बाहर के ग़रीब और ज़रूरतमंद देशों में आधिपत्य जमाने की कोशिशों में सफल होता जा रहा है, जोकि पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण है।