...तो क्या नेपाल के 'इस क़दम' से चीन की नेपाल में दखलंदाज़ी पर लगेगी लगाम?
~2.jpeg)
नेपाल में सख़्ती से लागू होगा डिप्लोमेटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट
AUG 31 (WTN) - भारत और नेपाल के बीच काफी अच्छे सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संबंध रहे हैं। लेकिन, जब से नेपाल में के.पी. शर्मा 'ओली' के नेतृत्व वाली वामपंथी विचारधारा वाली सरकार बनी है, तभी से दोनों ही देशों के बीच संबंधों में कड़वाहट आ गई है। दरअसल, भारत और नेपाल के बीच इस कड़वाहट के लिए पूरी तरह से चीन की भारत विरोधी नीतियां ज़िम्मेदार हैं। दरअसल, चीन की नेपाल के शासन-प्रशासन में काफी घुसपैठ हो चुकी है, और इसी कारण से नेपाल की ओली सरकार भारत विरोधी कामों को अंजाम दे रही है।
ख़ैर, जहां लगातार नेपाल के घरेलू मामलों में चीन की राजदूत की दखलंदाज़ी बढ़ती रही, लेकिन वहीं ओली सरकार चीन का विरोध नहीं कर सकी। इधर, चीन के प्रति नेपाल की ओली सरकार के 'समर्पण' के कारण नेपाल की जनता ने प्रधानमंत्री ओली की काफी आलोचना भी की। इसी कारण अब हर कही से विरोध होने पर नेपाल अपने डिप्लोमेटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट को सख़्ती से लागू करने जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे चीन की अपने राजदूत के ज़रिए नेपाल में हो रही दखलंदाज़ी पर लगाम लग सकेगी।
जी हां, अब नेपाल सरकार ने विदेशी राजनयिकों के लिए नियमों में बदलाव करने का बड़ा निर्णय लिया है। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार, अब नेपाल का विदेश मंत्रालय, डिप्लोमैटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट में बदलाव कर उसे सख़्ती से लागू करने जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि इसमें बदलाव से नेपाल के आंतरिक मामलों में विदेशी राजदूत घुसपैठ नहीं कर सकेंगे।
दरअसल, किसी भी देश के राजदूत को दूसरे देश में कुछ नियमों का पालन एक डिप्लोमेटिक प्रोटोकॉल के तहत करना होता है। लेकिन, जहां तक नेपाल की बात है, तो वहां पर अभी तक अब कोई भी निश्चित प्रोटोकॉल नहीं है। हालांकि,साल 2016 में ही नेपाल में डिप्लोमेटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट तैयार हो चुका था, लेकिन वो अब तक लागू नहीं हो सका है। हालांकि, नेपाल के विदेश मंत्रियों ने इसे लागू करने की कोशिश की, लेकिन वे अपने प्रयासों में असफल रहे।
ख़ैर, अब जबकि नेपाल के शासन में चीन का हस्तक्षेप बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में नेपाल की ओली सरकार, राजदूतों के लिए प्रोटोकॉल निर्धारित करने जा रही है। इसके अंतर्गत, सबसे पहले तो किसी भी देश का राजदूत बिना अपॉइटमेंट के किसी भी नेपाली नेता से नहीं मिल सकेगा। वैसे चीन की राजदूत हाओ यांकी फिलहाल बिना अपॉइटमेंट के ही सीधे प्रधानमंत्री ओली से मिल लेती हैं। इतना ही नहीं, नेपाल के मामलों की आंतरिक मीटिंग में भी कई बार हाओ यांकी की उपस्थिति देखी गई है।
दरअसल, पिछले दिनों सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में तनाव होने पर यांकी राजनैतिक तौर पर काफी सक्रिय रही थीं, और कहा जाता है कि पार्टी के विवाद को सुलझाने में यांकी ने महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। लेकिन, स्पष्ट है कि चीन की राजदूत यांकी जो काम कर थीं वो काम राजदूत के कामों में नहीं आता है। ख़ैर, अब यदि नेपाल में डिप्लोमेटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट सख़्ती से लागू होता है, तो चीन की राजदूत यांकी और अन्य देशों के राजदूतों को नियमों का पालन करना होगा, और राजदूत सिर्फ नेपाल और उस राजदूत के देश से जुड़े मुद्दों पर ही चर्चा कर सकेंगे। वहीं, यदि किसी भी देश का नेता, नेपाल के किसी नेता से मुलाक़ात करना चाहेगा, तो उस देश का राजदूत ही मीटिंग तय करवाएगा।
ख़ैर, माना जा रहा है कि यदि नेपाल में कड़ाई से डिप्लोमेटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होता है, तो चीन की नेपाल में गतिविधियों पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। वैसे कुछ जानकारों का मानना है कि नेपाल में डिप्लोमेटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होने से चीन, नेपाल की राजनीति में दखलंदाज़ी कम या बंद कर देगा। लेकिन, नेपाल में चीन को रोकना आसान नहीं है। चीन, नेपाल में सड़क निर्माण और रेलवे प्रोजेक्ट में भारी निवेश के साथ-साथ पोखरा शहर में हवाई अड्डा भी बना रहा है। वहीं, नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली, चीन के काफी क़रीब रहे हैं। यहां तक कि उन पर चीन के साथ मिलकर भ्रष्टाचार करने के आरोप भी लग चुके हैं। ख़ैर, अब देखना होगा कि नेपाल का डिप्लोमेटिक कोड ऑफ़ कंडक्ट, चीनी राजदूत की नेपाल में दखलंदाज़ी पर लगाम लगा पाता है कि नहीं?