BrahMos WORLD INDIA MADHYA PRADESH BHOPAL WTN SPECIAL GOSSIP CORNER RELIGION SPORTS BUSINESS FUN FACTS ENTERTAINMENT LIFESTYLE TRAVEL ART & LITERATURE SCIENCE & TECHNOLOGY HEALTH EDUCATION DIASPORA OPINION & INTERVIEW RECIPES DRINKS BIG MEMSAAB 2017 BUDGET 2017 FUNNY VIDEOS VIRAL ON WEB PICTURE STORIES Mahakal Ke Darshan
WTN HINDI ABOUT US PRIVACY POLICY SITEMAP CONTACT US
logo
Breaking News

जानिए क्यों चीन के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं मानवाधिकार संगठन?

Friday - September 11, 2020 12:33 pm , Category : WTN HINDI
चीन पर लगते रहे हैं मानवाधिकार हनन के आरोप
चीन पर लगते रहे हैं मानवाधिकार हनन के आरोप

चीन में जारी 'अन्याय' के ख़िलाफ़ उठी आवाज़ें

SEP 11 (WTN) - सालों से आरोप लगता रहा है कि चीन के वामपंथी शासन में मानवाधिकारों का हनन कोई नई बात नहीं है क्योंकि चीन में मानवाधिकार हनन का पुराना इतिहास रहा है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि चीन में साल 1949 में हुई कम्युनिस्ट क्रांति के बाद से माओ के नेतृत्व में लाखों लोगों को प्रताड़ित किया गया। वहीं, आरोप है कि विरोधियों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ दबाने के लिए हजारों लोगों का नरसंहार तक किया गया।

 

लेकिन वहीं, अमेरिका समेत कई देशों का आरोप है कि चीन की वामपंथी सरकार की मानवाधिकार विरोधी गतिविधियां अभी भी जारी हैं। इन देशों का आरोप है कि हॉन्गकॉन्ग से लेकर तिब्बत तक, और शिनजियांग से लेकर इनर मंगोलिया तक, हर कहीं पर चीन की वामपंथी सरकार की मानवाधिकार विरोधी करतूतें सामने आती रहती हैं।

 

दरअसल, चीन की वामपंथी सरकार का दमनकारी चेहरा साल 1989 में तब सबके सामने आया था, जब लोकतंत्र की मांग कर रहे विद्यार्थियों के आंदोलन को ख़त्म करने के लिये चीन की वामपंथी सरकार ने एक बड़ी हिंसक सैन्य कार्रवाई की थी। विदेशी मीडिया के अनुसार, चीन की सेना की इस सैन्य कार्रवाई में लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे क़रीब दस हज़ार विद्यार्थियों की मौत हो गई थी। हालांकि, चीन की वामपंथी सरकार का स्पष्ट कहना है कि वह सैन्य कार्रवाई ज़रूरी थी, और उस कार्रवाई में सिर्फ़ 300 से 400 विद्यार्थियों की ही मौत हुई थी।

 

लेकिन, चीन की वामपंथी सरकार ने साल 1989 में जिस तरह से विद्यार्थियों के आन्दोलन को हिंसक तरीक़े से कुचला था, उसके बाद से चीन में किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि वो सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा सके। और, यही कारण है कि चीन की वामपंथी सरकार की मानवाधिकार विरोधी गतिविधियां तिब्बत, शिनजियांग, हॉन्गकॉन्ग और इनर मंगोलिया में बढ़ती ही जा रही हैं।

 

लेकिन, कोरोना वायरस संक्रमण महामारी के मामले में चीन की वामपंथी सरकार ने जो ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैया अपनाया है, उसके बाद से चीन की वामपंथी सरकार के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में माहौल बनता जा रहा है। इसी कड़ी में अब ह्यूमन राइट्स वॉच, एमनेस्टी इंटरनेशनल और अंतर्राष्ट्रीय सेवा समेत 300 से ज़्यादा मानवाधिकार समूहों और संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र संघ से चीन की वामपंथी सरकार द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करने के लिए एक 'अंतर्राष्ट्रीय प्रहरी' स्थापित करने का अनुरोध किया है।

 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन मानवाधिकार समूहों और संगठनों ने एक खुले पत्र में कहा है कि वे हॉन्गकॉन्ग, तिब्बत और शिनजियांग जैसे स्थानों में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों के साथ-साथ चीन में जारी सेंसरशिप और इसकी आड़ में पर्यावरण को हो रहे नुकसान की जांच करने की, और इस पर चीन सरकार की प्रतिक्रिया की मांग करते हैं।

 

दरअसल, इन मानवाधिकार समूहों और संगठनों का मानना है कि चीन में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक 'स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय तंत्र' की स्थापना की जाना जरूरी है। वहीं, हॉन्गकॉन्ग में विरोध प्रदर्शनों को जिस तरह से दबाया जा रहा है और शिनजियांग प्रांत में अल्पसंख्यक उइगर मुसलमानों के साथ जो ज़्यादती की जा रही है और लोगों को हिरासत केंद्रों में रखा जा रहा है। वहीं, शिक्षा और प्रशिक्षण के नाम पर उन्हें जिस तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है, ऐसे में चीन पर पहले की तुलना में और भी ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की इस समय ज़रूरत है।

 

ऐसा नहीं है कि चीन में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों का पहले कभी विरोध नहीं हुआ है। दरअसल, ऐसा पहले भी होता आया है। लेकिन इसके पहले, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की कार्रवाई के संचालन में सहयोग कर रहे लोगों को चीन में बुरी तरह से प्रताड़ित करने के आरोप लगते रहे हैं। इतना ही नहीं, मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे लोगों को जेल में डालने और उन्हें ग़ायब तक करने के आरोप चीन की वामपंथी सरकार पर लगते रहे हैं। वहीं, आरोप हैं कि इन लोगों की पैरवी कर रहे वकीलों के लाइसेंस तक चीन की वामपंथी सरकार ने छीन लिए। ख़ैर, अब देखना होगा कि मानवाधिकार समूहों और संगठनों की इस कार्रवाई के बाद चीन सरकार क्या कुछ क़दम उठाती है?