मोदी सरकार के सामने आई अब 'यह' नई चुनौती!
~2.jpeg)
अब खुदरा महंगाई दर ने बढ़ाई मोदी सरकार की चिन्ता
SEP 11 (WTN) - कोरोना वायरस संक्रमण महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था को कितना ज़्यादा नुकसान हुआ है इसके आप प्रत्यक्ष गवाह हैं। कई दिनों तक चले लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद होने से चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में GDP ग्रोथ रेट में नकारात्मक गिरावट दर्ज़ की गई है।जहां लॉकडाउन के कारण करोड़ों लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वहीं, उद्योग व्यापार में भी भारी नुकसान देखने को मिला। और, इस सबके कारण मोदी सरकार को आम जनता के साथ-साथ विपक्ष का भारी विरोध झेलना पड़ रहा है।
हालांकि, लॉकडाउन खुलने के बाद अब धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आती जा रही है। लेकिन, अब खुदरा महंगाई दर में लगातार हो रही वृद्धि से आम लोगों का बजट गड़बड़ा रहा है। सबसे पहले तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आख़िर महंगाई दर क्या होती है? दरअसल, भारतीय बाज़ारों में सामान्य तौर पर कुछ समय के लिए वस्तुओं के दामों में उतार-चढ़ाव को ही महंगाई दर कहते हैं।
आमतौर पर जब किसी देश में वस्तुओं या सेवाओं की क़ीमतें सामान्य से ज़्यादा हो जाती हैं, तो इस स्थिति को महंगाई कहा जाता है। अब स्वाभाविक है कि वस्तुओं और सेवाओं की क़ीमतें बढ़ जाने से लोग महंगी हुई वस्तुओं को कम ख़रीदेंगे। वहीं, महंगी हुई सेवाओं का कम इस्तेमाल करेंगे। यानि कि महंगाई दर एक तरीके से बाज़ार में मुद्रा की उपलब्धता और वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि को मापने का एक तरीका है।
अब इसी महंगाई दर के आधार पर भारत में वित्तीय और मौद्रिक नीतियों के कई फैसले लिए जाते हैं। लेकिन, लॉकडाउन खुलने के बाद अब कोरोना वायरस के मामलों में तेज़ी आने के कारण सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जिसके कारण रोज़मर्रा के ज़रूरत की वस्तुओं की क़ीमतों में तेज़ी देखी गई है। वहीं, सरकार की ओर से भी भारी ख़रीदी की गई है, जिससे क़ीमतों में वृद्धि हुई है। इधर, एसबीआई इकोरैप की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति का आंकड़ा 7 प्रतिशत या उससे ऊपर बना रह सकता है।
वहीं, State Bank of India की ओर से जारी ताज़ा रिपोर्ट में बताया गया है कि खुदरा महंगाई दर अब दिसंबर महीने के बाद ही 4 प्रतिशत से नीचे आएगी। जहां तक जुलाई महीने में खुदरा मुद्रास्फीति दर की बात है, तो यह 6.93 प्रतिशत रही थी। लेकिन वहीं, पिछले साल 2019 की जुलाई में यह आंकड़ा 3.15 प्रतिशत ही था। जानकारों के अनुसार मुद्रास्फीति में यह तेज़ी अनाज, दाल-सब्जियों और मांस-मछली आदि के दाम बढ़ने के कारण है।
SBI की रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 का संक्रमण अब ग्रामीण इलाकों में तेज़ी से बढ़ रहा है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों से अनाज, सब्जी और फल आदि की आपूर्ति में रुकावटें आ रही हैं। वहीं, कहीं पर कम बारिश तो कहीं पर ज़्यादा बारिश के कारण अनाज, सब्जी और फल के उत्पादन पर असर पड़ा है। ऐसे में इनके अलावा अन्य वस्तुओं की आपूर्ति अच्छी तरह से बहाल होने में थोड़ा समय लगेगा। ऐसे में सरकार को मुद्रास्फीति बढ़ने का ख़तरा सता रहा है।
वैसे, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकार ने RBI को मुद्रास्फीति को ज़्यादा से ज़्यादा दो प्रतिशत उतार या चढ़ाव के साथ चार प्रतिशत के आस पास रखने की ज़िम्मेदारी दी है। अब जबकि कोरोना वायरस और अन्य कारणों से माल सप्लाई में रुकावट हो रही है, तो खुदरा महंगाई दर में वृद्धि स्वाभाविक है। वहीं, यदि ऐसा होता है, तो हालात सामान्य होने तक मोदी सरकार को महंगाई के मुद्दे पर देश की जनता की नाराज़गी और विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ेगा।