लाखों लोगों को बेरोज़गार कर गया कोरोना संकट, लेकिन अब सुधर रहे हालात
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कोरोना संकट से बढ़ी बेरोज़गारी की समस्या, लेकिन वर्क फ्रॉम होम ने बचाई लाखों की नौकरियां
SEP 18 (WTN) - जैसा कि आप जानते ही हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण बीमारी (COVID-19) को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में काफ़ी लम्बे समय तक लॉकडाउन लगाया गया था। स्वाभाविक है कि लम्बे लॉकडाउन के कारण देश में आर्थिक गतिविधियों पर लगाम लग गई थी, वहीं मिल, कारखाने और ऑफिस आदि बन्द रहने से देश की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश की GDP में 23.9% की भारी गिरावट देखने को मिली है।
लेकिन, देश की GDP ही नहीं, बल्कि नौकरियों पर भी कोरोना काल में काफी संकट छाया हुआ है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि CMIE (Centre for Monitoring Indian Economy) की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई महीने से लेकर अगस्त महीने के दौरान पूरे देश में क़रीब 66 लाख लोगों की नौकरी जाने का अनुमान है। हालांकि, इससे पहले CMIE ने अप्रैल में अनुमान लगाया था कि क़रीब 1.21 करोड़ नौकरियां लॉकडाउन और कोरोना संकट के कारण जा सकती हैं। लेकिन, इनमें से क़रीब 65 लाख लोगों को अगस्त महीने तक नौकरियां वापस मिल गई थीं। ख़ैर, बता दें कि CMIE की रिपोर्ट में स्वरोजगार करने वाले लोग शामिल नहीं हैं।
CMIE के आंकड़ों की मानें, तो मई से अगस्त महीने के दौरान क़रीब 50 लाख औद्योगिक श्रमिक किसी न किसी कारण से नौकरी से निकाले गए। आकड़ों के अनुसार, साल 2019 की तुलना में साल 2020 में औद्योगिक श्रमिकों के रोज़गार में क़रीब 26 प्रतिशत की कमी आई है। इतना ही नहीं, इस दौरान इंजीनियर्स, टीचर्स और डॉक्टर्स समेत इस तरह के पेशेवरों को भी अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। CMIE के अनुसार, कोरोना संकट के कारण पेशेवरों के रोज़गार की दर साल 2016 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गई है।
दरअसल, लॉकडाउन और कोरोना संकट के कारण काफी तादात में नौकरियां जा सकती थीं, लेकिन लाखों की तादात में लोगों ने वर्क फ्रॉम होम किया जिसके कारण उनकी नौकरियां बच गईं। CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन और उसके बाद के रोज़गार संकट का असर क्लेरिकिल कर्मचारियों की नौकरी पर ज़्यादा नहीं पड़ा है क्योंकि ऑफिस क्लर्क, बीपीओ वर्कर्स, डाटा एंट्री ऑपरेटर्स आदि नौकरियां वर्क फ्रॉम होम मोड में काम करने से बच गईं।
लॉकडाउन और कोरोना संकट में रोज़गार के लिए बारे में CMIE ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नौकरीपेशा लोगों में सबसे ज़्यादा नौकरियां सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स, डॉक्टर्स, टीचर्स और निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की गई है। CMIE के अनुसार, पिछले साल 2019 में मई-अगस्त महीने की समयावधि में नौकरी करने वाले इस तरह के पेशेवरों की संख्या क़रीब 1.88 करोड़ थी। लेकिन, इस साल लॉकडाउन और कोरोना संकट के कारण मई-अगस्त महीने की समयावधि के दौरान नौकरी करने वाले इस तरह के पेशेवरों की संख्या घटकर 1.22 करोड़ ही रह गई। आंकड़ों के अनुसार, साल 2016 के बाद यह इस तरह के पेशेवरों की रोज़गार की सबसे कम दर है।
ख़ैर, कोरोना वायरस महामारी एक ऐसी विकट समस्या है जिसका सामना लगभग हर देश को करना पड़ा है। कोरोना वायरस संक्रमण महामारी की भयावहता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस लेख को लिखे जाने तक, कोरोना वायरस संक्रमण बीमारी के कारण पूरी दुनिया में क़रीब 9,50,625 लोगों की मौत हो चुकी है और 3,03,56,725 लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण से बचाने के लिए लॉकडाउन लगाना जरूरी था।
वहीं, लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों का ठप होना और लोगों की नौकरियां जाना भी स्वाभाविक ही था। लेकिन, जबकि अब लॉकडाउन पूरी तरह से खुल गया है, और आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आ गई है। तो ऐसे में आशा की जाना चाहिए कि जल्द ही देश में रोज़गार के अवसर पैदा होंगे और बेरोज़गारी में काफी कमी आएगी।