अमेरिका और चीन के बीच टकराव से रूस की बढ़ी 'चिन्ता'
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अमेरिका और चीन के बीच युद्ध की आशंका के बीच सुदूर पूर्व में रूस ने बढ़ाई अपनी सैन्य शक्ति
SEP 21 (WTN) - जैसा कि आप जानते ही हैं कि दूसरे विश्व युद्ध से लेकर USSR के विघटन तक, अमेरिका और रूस के बीच जारी शीत युद्ध से दुनिया दो विचारधाराओं में बंट गई थी। वहीं, अमेरिका और USSR दोनों के ही शक्तिशाली होने से शीत युद्ध के समय इन दोनों ही देशों के बीच युद्ध का ख़तरा बना रहता था। लेकिन, USSR के विघटन के बाद रूस कमज़ोर होता चला गया, और अमेरिका अविवादित रूप से दुनिया का सबसे ताक़तवर देश बन गया
लेकिन, समय के साथ रूस ने ख़ुद को एकबार फिर से शक्तिशाली किया। रूस की राजनीति में रूस के वर्तमान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एंट्री के साथ ही रूस में काफी परिवर्तन हुए और आज रूस इस स्थिति में फिर से आ गया है कि वो एकबार फिर से अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है। वहीं इधर, USSR के विघटन के बाद चीन ने धीरे-धीरे ख़ुद को आर्थिक और सामरिक रूप से काफी मजबूत किया। और इसी कारण से आज चीन, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति है। इतना ही नहीं, चीन आज ख़ुद को सामरिक रूप से इतना शक्तिशाली समझने लगा है कि वो अब खुलेआम अमेरिका को युद्ध की चुनौती देने लगा है।
ख़ैर, जैसा कि आप जानते ही हैं कि ताइवान और दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन और अमेरिका के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। आशंका ज़ाहिर की जा रही है कि दक्षिण चीन सागर में दोनों देशों के बीच कभी भी युद्ध छिड़ सकता है। लेकिन वहीं, अमेरिका और चीन के बीच जारी इस तनाव के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, रूस को सुरक्षित करने और रूस को शक्तिशाली साबित करने की रणनीति में जुट गए हैं। जी हां, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अमेरिका और चीन के बीच लगातार बढ़ते तनाव के दौरान, सुदूर पूर्व में रूस अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहा है।
दरअसल, रूसी रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट की एक पोस्ट में रूस के रक्षा मंत्री के बयान के अनुसार, पूर्वी क्षेत्र में तनाव बढ़ने के कारण रूस अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ा रहा है। हालांकि, अपने बयान में रूसी रक्षा मंत्री ने किसी भी देश का नाम नहीं लिया है। लेकिन, इस पर रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि रूस को सुरक्षित रखने और उसे शक्तिशाली साबित करने के लिए पुतिन, पूर्वी चीन सागर में स्थित रूस के नेवल बेस व्लादिवोस्तोक पर रूसी सेना की संख्या बढ़ा सकते हैं। बता दें कि इस नेवल बेस के ज़रिए रूस, प्रशांत महासागर, पूर्वी चीन सागर और फिलीपीस की खाड़ी के क्षेत्रों में होने वाली गतिविधियों पर न केवल नज़र रख सकता है बल्कि ज़रूरत पड़ने पर वो अपनी सेना को युद्ध में भी उतार सकता है।
ख़ैर, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव से रूसी राष्ट्रपति पुतिन अच्छी तरह से वाकिफ ही होंगे। साफ है कि चीन से लगी सीमा और प्रशांत महासागर क्षेत्र में बढ़ते तनाव से पुतिन चिंतित होंगे। और यही कारण है कि रूस को किसी भी तरह के ख़तरे से सुरक्षित रखने और रूस को शक्तिशाली दिखाने के लिए पुतिन इस क्षेत्र में रूस के हितों की सुरक्षा के लिए सैनिकों की उपस्थिति लगातार बढ़ा रहे हैं।
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अमेरिका इस क्षेत्र में जापान की मदद से अपनी सैन्य उपस्थिति को लगातार मज़बूत कर रहा है, और अमेरिका के जंगी जहाज, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर का चक्कर लगा रहे हैं। जानकारों के अनुसार, अमेरिका और चीन के बीच किसी भी तरह का टकराव शुरू होने से पहले पुतिन यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि रूस की सैन्य क्षमताएं पर्याप्त रूप से रक्षात्मक और आक्रामक रहें। क्योंकि आने वाले दिनों में अमेरिका और चीन के बीच नौसैनिक टकराव होता है, तो इसका असर रूस पर किसी न किसी तरह से तो पड़ेगा ही। और, यदि रूस इस टकराव का हिस्सा बनता है, तो रूस को इस इलाके में ख़ुद को मजबूत बनाए रखना ज़रूरी है।
ख़ैर, यदि आप सोच रहे हैं कि अमेरिका और चीन के बीच टकराव होता है, तो रूस, अमेरिका के खिलाफ चीन का खुलकर साथ देगा, तो शायद आपका सोचना फिलहाल ग़लत है। दरअसल, रूस पूर्वी क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती बढ़ाकर अमेरिका और चीन दोनों को ही अपनी ताकत दिखाना चाहता है। दरअसल, रूस अपने पारंपरिक प्रतिद्वंदी अमेरिका को यह बताना चाहता है कि रूस एक कमज़ोर नहीं बल्कि एक शक्तिशाली देश है। वहीं, रूस, चीन को भी दिखाना चाहता है कि रूस एक शक्तिशाली देश है और व्लादिवोस्तोक शहर पर चीन के द्वारा किए गए दावों को वो नहीं मानता है।
ख़ैर, यदि अमेरिका और चीन के बीच युद्ध होता है, तो रूस पूरी तरह से शान्त बैठे यह तो संभव नही है। दरअसल, रूस कभी नहीं चाहेगा कि अमेरिका इस इलाके में मजबूत हो। वहीं, रूस यह भी नहीं चाहेगा कि चीन को इस इलाके में फ्री हैंड मिल जाए क्योंकि व्लादिवोस्तोक शहर समेत अन्य मामलों को लेकर रूस पहले से ही चीन से नाराज़ है। साफ है कि अमेरिका और चीन के बीच यदि युद्ध होता है, तो रूस के सामने बड़ा धर्म संकट पैदा हो जाएगा कि वो किसका साथ दे क्योंकि रूस से लगे इस इलाक़े में अमेरिका या चीन किसी की भी मजबूत स्थिति रूस के लिए भविष्य में परेशानियां खड़ी कर सकती हैं।