जानिए अब पाकिस्तान को किसने दिया बड़ा झटका?
Thursday - September 19, 2019 4:14 pm ,
Category : WTN HINDI

चीन ने पाकिस्तान में निवेश किया कम
चीन की ‘बेरूखी’ के चलते आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान की हालत हुई और भी ख़राब
SEP 19 (WTN) – आतंक को बढ़ावा देना वाला पाकिस्तान मोदी सरकार की कूटनीति के कारण पूरी दुनिया में बेनकाब हो चुका है। कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढावा देने वाले पाकिस्तान को भारत ने इस तरह से घेर लिया है कि उसे दुनिया के देशों और वित्तीय संस्थानों से क़र्ज़ मिलना मुश्किल होता जा रहा है, जिसके कारण पहले से ही ख़राब चल रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दिनों दिन और भी ख़राब होती जा रही है।
लेकिन कहते हैं ना कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। कुछ इसी तर्ज़ पर विस्तारवादी मानसिकता वाला देश चीन, पाकिस्तान की अब तक आर्थिक मदद करता रहा है ताकि पाकिस्तान अपनी नापाक गतिविधियों से भारत को परेशान करता रहे। लेकिन पाकिस्तान जैसे देश किसी भी देश के हितैषी नहीं होते हैं। इस बात को चीन लगता है कि अब समझ गया है, इसलिए चीन अब पाकिस्तान को देने वाली आर्थिक मदद और वहां पर निवेश को धीरे-धीरे कम करने लगा है।
जैसा कि आप जानते हैं कि चीन को हमेशा से ही पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त माना जाता रहा है। कूटनीतिक, आर्थिक और समारिक, इन सभी क्षेत्रों में चीन ने हमेशा से ही पाकिस्तान की मदद की है। यह सभी जानते हैं कि पाकिस्तान की मदद चीन इसलिए कर रहा है ताकि पाकिस्तान इन मदद के ऐवज़ में भारत को आतंकी गतिविधियों के द्वारा परेशान करता रहे। लेकिन चीन को लगता है कि अब समझ में आ गया है कि पाकिस्तान में निवेश करना ना केवल बेवकूफी है बल्कि एक बहुत बड़ी नासमझी है।
मीडिया से मिली जानकारी के मुताबिक़, पाकिस्तान के चालू वित्त वर्ष 2019-20 के जुलाई-अगस्त के महीने में चीन का निवेश पाकिस्तान में घटा है। पाकिस्तान के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में कुल FDI (Foreign Direct Investment) यानी कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 57.8 प्रतिशत गिरकर 8.34 करोड़ डॉलर (करीब 592.14 करोड़ रुपये) पर आ गया है।
पाकिस्तान में विदेशी निवेश दिनों-दिन कितना कम होता जा रहा है, इसका उदाहरण यह है कि जहां साल 2018 के जुलाई-अगस्त में प्रत्यक्ष विदेश निवेश 19.79 करोड़ डॉलर (करीब 1405.09 करोड़ रुपये) था, वह अब सिर्फ़ 8.34 करोड़ डॉलर (करीब 592.14 करोड़ रुपये) रह गया है।
वहीं बात करे पाकिस्तान में चीन के निवेश की तो चालू वित्त वर्ष 2019-20 के जुलाई-अगस्त के महीने में चीन ने पाकिस्तान में सिर्फ़ 2.89 करोड़ डॉलर (करीब 205.19 करोड़ रुपये) का निवेश किया है। पाकिस्तान में चीन का निवेश किस तेज़ी से कम हुआ है, इसका उदाहरण है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान जुलाई-अगस्त में चीन ने पाकिस्तान में 21.6 करोड़ डॉलर (करीब 1533.6 करोड़ रुपये) का निवेश किया था। साफ़ ज़ाहिर है कि चीन ने पाकिस्तान में अपने निवेश को घटाकर काफ़ी कम कर दिया है।
चीन के लिए पाकिस्तान, भारत को परेशान करने का एक ज़रिया मात्र है। पाकिस्तान को मदद देकर चीन एक तरह से पाकिस्तान की नाज़ायज गतिविधियों को आर्थिक सहारा देता रहता है। लगातार ख़राब होती जा रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए चीन ने पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक की सहायता मिलने से पहले वहां पर अरबों डॉलर का निवेश किया था। इतना ही नहीं, पाकिस्तान को नक़दी संकट से बचाने के लिए चीन ने पाकिस्तान को दो अरब डॉलर का क़र्ज़ भी दिया था।
वो समय अलग था जब चीन हर क़दम पर पाकिस्तान का साथ देता था। शायद चीन को अब लगने लगा है कि पाकिस्तान में निवेश कर उसने बहुत बड़ी ग़लती की है। तभी चीन अब पाकिस्तान को आर्थिक मोर्चों पर झटके देता जा रहा है। चीन धीरे-धीरे पाकिस्तान में अपना निवेश कम करता जा रहा है, जिससे पहले से ही आर्थिक बदहाली झेल रहे पाकिस्तान की आर्थिक हालत और भी ज़्यादा ख़राब हो सकती है।
पाकिस्तान की आंतरिक गड़बड़ियों को लगता है कि अब चीन समझ गया है, और उसे लगने लगा है कि पाकिस्तान में जिस तरह से बलूचिस्तान और पीओके में आतंरिक हालात हैं उसके मद्देनज़र यहां पर निवेश करने से भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वहीं अफगानिस्तान में अमेरिका और तालिबान के बीच शान्ति वार्ता के स्धगित होने से भी चीन चिन्तित है।
दरअसल, ख़ुद पाकिस्तान ही चीन की परियोजनाओं पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहा है है। चीन की अति महत्वाकंक्षी सीपीईसी परियोजना के निर्माणकार्य भी जिस तेज़ गति से चलने चाहिए, वे नहीं चल रहे हैं। चीन की अरबों डॉलर की इस परियोजना के कामों में पाकिस्तान के अधिकारी ही रूच नहीं दिखा रहे हैं। वहीं पाकिस्तान की सेना भी इस परियोजना से ख़ुश नहीं है, क्योंकि उसे लगने लगा है कि सीपीईसी से सिर्फ़ और सिर्फ़ चीन को ही फ़ायदा होने वाला है।
सीपीईसी परियोजना के कई महत्वपूर्ण प्रोजक्ट्स पाकिस्तान के अशांत प्रान्त बलूचिस्तान में हैं। जहां के ग्वादर बंदरगाह पर कुछ दिनों पहले चीनी नागरिकों को निशाना बनाकर बम विस्फोट हो चुका है। साफ़ ज़ाहिर है कि पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों में वृद्धि, सीपीईसी परियोजना में पाकिस्तान की सेना और अधिकारियों की अरूचि और चीन की आर्थिक सहायता के सही उपयोग ना होने पर चीन अब धीरे-धीरे पाकिस्तान से तंग आकर अपने निवेश को वहां पर कम करता जा रहा है।
SEP 19 (WTN) – आतंक को बढ़ावा देना वाला पाकिस्तान मोदी सरकार की कूटनीति के कारण पूरी दुनिया में बेनकाब हो चुका है। कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढावा देने वाले पाकिस्तान को भारत ने इस तरह से घेर लिया है कि उसे दुनिया के देशों और वित्तीय संस्थानों से क़र्ज़ मिलना मुश्किल होता जा रहा है, जिसके कारण पहले से ही ख़राब चल रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दिनों दिन और भी ख़राब होती जा रही है।
लेकिन कहते हैं ना कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। कुछ इसी तर्ज़ पर विस्तारवादी मानसिकता वाला देश चीन, पाकिस्तान की अब तक आर्थिक मदद करता रहा है ताकि पाकिस्तान अपनी नापाक गतिविधियों से भारत को परेशान करता रहे। लेकिन पाकिस्तान जैसे देश किसी भी देश के हितैषी नहीं होते हैं। इस बात को चीन लगता है कि अब समझ गया है, इसलिए चीन अब पाकिस्तान को देने वाली आर्थिक मदद और वहां पर निवेश को धीरे-धीरे कम करने लगा है।
जैसा कि आप जानते हैं कि चीन को हमेशा से ही पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त माना जाता रहा है। कूटनीतिक, आर्थिक और समारिक, इन सभी क्षेत्रों में चीन ने हमेशा से ही पाकिस्तान की मदद की है। यह सभी जानते हैं कि पाकिस्तान की मदद चीन इसलिए कर रहा है ताकि पाकिस्तान इन मदद के ऐवज़ में भारत को आतंकी गतिविधियों के द्वारा परेशान करता रहे। लेकिन चीन को लगता है कि अब समझ में आ गया है कि पाकिस्तान में निवेश करना ना केवल बेवकूफी है बल्कि एक बहुत बड़ी नासमझी है।
मीडिया से मिली जानकारी के मुताबिक़, पाकिस्तान के चालू वित्त वर्ष 2019-20 के जुलाई-अगस्त के महीने में चीन का निवेश पाकिस्तान में घटा है। पाकिस्तान के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में कुल FDI (Foreign Direct Investment) यानी कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 57.8 प्रतिशत गिरकर 8.34 करोड़ डॉलर (करीब 592.14 करोड़ रुपये) पर आ गया है।
पाकिस्तान में विदेशी निवेश दिनों-दिन कितना कम होता जा रहा है, इसका उदाहरण यह है कि जहां साल 2018 के जुलाई-अगस्त में प्रत्यक्ष विदेश निवेश 19.79 करोड़ डॉलर (करीब 1405.09 करोड़ रुपये) था, वह अब सिर्फ़ 8.34 करोड़ डॉलर (करीब 592.14 करोड़ रुपये) रह गया है।
वहीं बात करे पाकिस्तान में चीन के निवेश की तो चालू वित्त वर्ष 2019-20 के जुलाई-अगस्त के महीने में चीन ने पाकिस्तान में सिर्फ़ 2.89 करोड़ डॉलर (करीब 205.19 करोड़ रुपये) का निवेश किया है। पाकिस्तान में चीन का निवेश किस तेज़ी से कम हुआ है, इसका उदाहरण है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान जुलाई-अगस्त में चीन ने पाकिस्तान में 21.6 करोड़ डॉलर (करीब 1533.6 करोड़ रुपये) का निवेश किया था। साफ़ ज़ाहिर है कि चीन ने पाकिस्तान में अपने निवेश को घटाकर काफ़ी कम कर दिया है।
चीन के लिए पाकिस्तान, भारत को परेशान करने का एक ज़रिया मात्र है। पाकिस्तान को मदद देकर चीन एक तरह से पाकिस्तान की नाज़ायज गतिविधियों को आर्थिक सहारा देता रहता है। लगातार ख़राब होती जा रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए चीन ने पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक की सहायता मिलने से पहले वहां पर अरबों डॉलर का निवेश किया था। इतना ही नहीं, पाकिस्तान को नक़दी संकट से बचाने के लिए चीन ने पाकिस्तान को दो अरब डॉलर का क़र्ज़ भी दिया था।
वो समय अलग था जब चीन हर क़दम पर पाकिस्तान का साथ देता था। शायद चीन को अब लगने लगा है कि पाकिस्तान में निवेश कर उसने बहुत बड़ी ग़लती की है। तभी चीन अब पाकिस्तान को आर्थिक मोर्चों पर झटके देता जा रहा है। चीन धीरे-धीरे पाकिस्तान में अपना निवेश कम करता जा रहा है, जिससे पहले से ही आर्थिक बदहाली झेल रहे पाकिस्तान की आर्थिक हालत और भी ज़्यादा ख़राब हो सकती है।
पाकिस्तान की आंतरिक गड़बड़ियों को लगता है कि अब चीन समझ गया है, और उसे लगने लगा है कि पाकिस्तान में जिस तरह से बलूचिस्तान और पीओके में आतंरिक हालात हैं उसके मद्देनज़र यहां पर निवेश करने से भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वहीं अफगानिस्तान में अमेरिका और तालिबान के बीच शान्ति वार्ता के स्धगित होने से भी चीन चिन्तित है।
दरअसल, ख़ुद पाकिस्तान ही चीन की परियोजनाओं पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहा है है। चीन की अति महत्वाकंक्षी सीपीईसी परियोजना के निर्माणकार्य भी जिस तेज़ गति से चलने चाहिए, वे नहीं चल रहे हैं। चीन की अरबों डॉलर की इस परियोजना के कामों में पाकिस्तान के अधिकारी ही रूच नहीं दिखा रहे हैं। वहीं पाकिस्तान की सेना भी इस परियोजना से ख़ुश नहीं है, क्योंकि उसे लगने लगा है कि सीपीईसी से सिर्फ़ और सिर्फ़ चीन को ही फ़ायदा होने वाला है।
सीपीईसी परियोजना के कई महत्वपूर्ण प्रोजक्ट्स पाकिस्तान के अशांत प्रान्त बलूचिस्तान में हैं। जहां के ग्वादर बंदरगाह पर कुछ दिनों पहले चीनी नागरिकों को निशाना बनाकर बम विस्फोट हो चुका है। साफ़ ज़ाहिर है कि पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों में वृद्धि, सीपीईसी परियोजना में पाकिस्तान की सेना और अधिकारियों की अरूचि और चीन की आर्थिक सहायता के सही उपयोग ना होने पर चीन अब धीरे-धीरे पाकिस्तान से तंग आकर अपने निवेश को वहां पर कम करता जा रहा है।