जानिए ईंधन की मांग में आई गिरावट दे रही क्या संकेत?
Friday - October 18, 2019 1:54 pm ,
Category : WTN HINDI

दो साल के निचले स्तर पर पहुंची ईंधन की मांग
आर्थिक मंदी से औद्योगिक विकास दर को लगा झटका
OCT 18 (WTN) – जैसा कि आप जानते हैं कि वैश्विक आर्थिक मंदी का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक़, दुनिया की 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्थाएं मंदी का शिकार हैं। बात करें भारत की तो भारत जैसे तेजी से विकास कर रहे देश की अर्थव्यवस्था को मंदी का सबसे ज़्यादा सामना करना पड़ रहा है। वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ समेत विश्व की कई वित्तीय संस्थाओं ने चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट को संशोधित कर कम कर दिया है।
आर्थिक मंदी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत पिछले एक साल से मिलने लगे थे जब ऑटो मोबाइल सेक्टर में मंदी देखी जा रही थी। पिछले एक साल से देश में गाड़ियों की बिक्री में काफ़ी गिरावट दर्ज़ की गई है। देश में आर्थिक मंदी का सीधा असर अब औद्योगिक मांग पर देखने को मिल रहा है। डीज़ल और औद्योगिक ईंधन की खपत घटने के कारण पेट्रोल और एलपीजी की खपत में भी सुस्ती देखी जा रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन दोनों ही कारणों से देश में ईंधन की मांग सितम्बर के महीने में घटकर दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है।
पेट्रोलियम प्लानिंग एण्ड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के आंकड़ों के मुताबिक़, पेट्रोलियम उत्पादों की खपत सितम्बर 2019 में घटकर 1.601 करोड़ टन पर रह गई। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पेट्रोलियम उत्पादों की मांग का यह आंकड़ा, जुलाई 2017 के बाद सबसे कम रहा है। वहीं एक साल पहले की बात करें तो सिम्तबर 2018 में भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 1.606 करोड़ टन थी।
बात करें डीज़ल की जो कि भारत में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता, तो इस अवधि में भारत में डीज़ल की मांग 3.2 प्रतिशत घटकर 58 लाख टन रह गई। वहीं इसी अवधि में नेप्था की बिक्री 25 प्रतिशत घटकर 8.44 लाख टन रह गई। सड़क निर्माण में काम आने वाले बिटुमेन की खपत में भी गिरावट दर्ज की गई है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस अवधि में बिटुमेन की खपत 7.3 प्रतिशत घटकर 3.43 लाख टन रह गई है, जबकि फ्यूल ऑयल की बिक्री 3.8 प्रतिशत घटकर 5.25 लाख टन रह गई है।
साफ़ ज़ाहिर है कि पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री में कमी के कारण एलपीजी और पेट्रोल की मांग में वृद्धि पर भी सुस्ती का असर पड़ा है। आंकड़ों के मुताबिक पेट्रोल की बिक्री सिर्फ़ 6.2 प्रतिशत बढ़कर 23.7 लाख टन रही, जबकि विमान ईंधन (एटीएफ) की बिक्री 1.6 प्रतिशत घटकर 6.66 लाख टन रह गई।
एलपीजी यानी कि रसोई गैस की बात करें तो भारत में एलपीजी की खपत 6 प्रतिशत बढ़कर 21.8 लाख टन पर पहुंच गई है। एलपीजी की खपत में वृद्धि का कारण है मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘उज्जवला योजना’। जैसा कि आप जानते हैं कि मोदी सरकार खाना पकाने के लिए लकड़ी-उपले की जगह एलपीजी के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है जिससे खाना पकाने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा हो और प्रदूषण कम हो। वहीं केरोसीन की बात करें तो इस अवधि में केरोसीन की मांग क़रीब 38 प्रतिशत घटकर 1.76 लाख टन रह गई। कहा जा रहा है कि केरोसीन की मांग में कमी का एक बड़ा कारण ‘उज्जवला योजना’ ही है।
आर्थिक मंदी के चलते अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच सॉल्यूशंस ने भारत की तेल सम्बन्धित मांग के अपने अनुमान में कमी कर दी है। जानकारों के मुताबिक़, यह देश की अर्थव्यवस्था में और गिरावट आने और विकास दर घटने की आशंका को बढ़ा रहा है। फिच ने साल 2021 तक ईंधन की मांग में औसतन वृद्धि के अपने अनुमान को 4.6 प्रतिशत से घटाकर 3.8 प्रतिशत कर दिया है। यानी कि साफ़ ज़ाहिर है कि देश में भारत की तेल सम्बन्धित मांग में गिरावट आने से आने समय में इसका नकारात्मक असर देश की औद्योगिक विकास दर पर पड़ेगा और यदि ऐसा होता है तो देश की विकास दर और भी कम हो सकती है।
OCT 18 (WTN) – जैसा कि आप जानते हैं कि वैश्विक आर्थिक मंदी का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक़, दुनिया की 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्थाएं मंदी का शिकार हैं। बात करें भारत की तो भारत जैसे तेजी से विकास कर रहे देश की अर्थव्यवस्था को मंदी का सबसे ज़्यादा सामना करना पड़ रहा है। वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ समेत विश्व की कई वित्तीय संस्थाओं ने चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट को संशोधित कर कम कर दिया है।
आर्थिक मंदी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत पिछले एक साल से मिलने लगे थे जब ऑटो मोबाइल सेक्टर में मंदी देखी जा रही थी। पिछले एक साल से देश में गाड़ियों की बिक्री में काफ़ी गिरावट दर्ज़ की गई है। देश में आर्थिक मंदी का सीधा असर अब औद्योगिक मांग पर देखने को मिल रहा है। डीज़ल और औद्योगिक ईंधन की खपत घटने के कारण पेट्रोल और एलपीजी की खपत में भी सुस्ती देखी जा रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन दोनों ही कारणों से देश में ईंधन की मांग सितम्बर के महीने में घटकर दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है।
पेट्रोलियम प्लानिंग एण्ड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के आंकड़ों के मुताबिक़, पेट्रोलियम उत्पादों की खपत सितम्बर 2019 में घटकर 1.601 करोड़ टन पर रह गई। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पेट्रोलियम उत्पादों की मांग का यह आंकड़ा, जुलाई 2017 के बाद सबसे कम रहा है। वहीं एक साल पहले की बात करें तो सिम्तबर 2018 में भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 1.606 करोड़ टन थी।
बात करें डीज़ल की जो कि भारत में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता, तो इस अवधि में भारत में डीज़ल की मांग 3.2 प्रतिशत घटकर 58 लाख टन रह गई। वहीं इसी अवधि में नेप्था की बिक्री 25 प्रतिशत घटकर 8.44 लाख टन रह गई। सड़क निर्माण में काम आने वाले बिटुमेन की खपत में भी गिरावट दर्ज की गई है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस अवधि में बिटुमेन की खपत 7.3 प्रतिशत घटकर 3.43 लाख टन रह गई है, जबकि फ्यूल ऑयल की बिक्री 3.8 प्रतिशत घटकर 5.25 लाख टन रह गई है।
साफ़ ज़ाहिर है कि पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री में कमी के कारण एलपीजी और पेट्रोल की मांग में वृद्धि पर भी सुस्ती का असर पड़ा है। आंकड़ों के मुताबिक पेट्रोल की बिक्री सिर्फ़ 6.2 प्रतिशत बढ़कर 23.7 लाख टन रही, जबकि विमान ईंधन (एटीएफ) की बिक्री 1.6 प्रतिशत घटकर 6.66 लाख टन रह गई।
एलपीजी यानी कि रसोई गैस की बात करें तो भारत में एलपीजी की खपत 6 प्रतिशत बढ़कर 21.8 लाख टन पर पहुंच गई है। एलपीजी की खपत में वृद्धि का कारण है मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘उज्जवला योजना’। जैसा कि आप जानते हैं कि मोदी सरकार खाना पकाने के लिए लकड़ी-उपले की जगह एलपीजी के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है जिससे खाना पकाने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा हो और प्रदूषण कम हो। वहीं केरोसीन की बात करें तो इस अवधि में केरोसीन की मांग क़रीब 38 प्रतिशत घटकर 1.76 लाख टन रह गई। कहा जा रहा है कि केरोसीन की मांग में कमी का एक बड़ा कारण ‘उज्जवला योजना’ ही है।
आर्थिक मंदी के चलते अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच सॉल्यूशंस ने भारत की तेल सम्बन्धित मांग के अपने अनुमान में कमी कर दी है। जानकारों के मुताबिक़, यह देश की अर्थव्यवस्था में और गिरावट आने और विकास दर घटने की आशंका को बढ़ा रहा है। फिच ने साल 2021 तक ईंधन की मांग में औसतन वृद्धि के अपने अनुमान को 4.6 प्रतिशत से घटाकर 3.8 प्रतिशत कर दिया है। यानी कि साफ़ ज़ाहिर है कि देश में भारत की तेल सम्बन्धित मांग में गिरावट आने से आने समय में इसका नकारात्मक असर देश की औद्योगिक विकास दर पर पड़ेगा और यदि ऐसा होता है तो देश की विकास दर और भी कम हो सकती है।