...तो टैक्स के बोझ के लिए तैयार रहे आम जनता!
भारी राजकोषीय घाटे को पूरा करने सरकार के उपायों से बढ़ सकती हैं मध्यम वर्ग की परेशानियां
MAY 30 (WTN) - कोरोना वायरस संकट ने भारत की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जारी लॉकडाउन ने देश की आर्थिक गतिविधियों को ठप सा कर दिया है। अब जबकि कुछ भी साफ नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था कब तक पटरी पर आएगी? ऐसे में वित्त वर्ष 2019-20 के आर्थिक आंकड़ों ने सरकार के सामने चुनौतियां बढ़ा दी हैं, जिसका बोझ आम जनता को उठाना पड़ सकता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वित्त वर्ष 2019-20 की जीडीपी ग्रोथ रेट 11 साल के निचले स्तर पर आई है। वहीं, देश के राजकोषीय घाटे का आंकड़ा भी 7 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। यानि वित्त वर्ष 2019-20 में सरकारी खजाने का घाटा पिछले सात साल में सबसे ज्यादा रहा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वित्त वर्ष 2019-20 का राजकोषीय घाटा सरकार के अनुमान से भी ज़्यादा रहा है।
अब जबकि राजकोषीय घाटा अनुमान से ज्यादा रहा है, तो आम जनता को इसका बोझ उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। दरअसल, राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार कई तरह के उपाय करती है। जैसे, पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त टैक्स लगाना आदि। वहीं, सरकार टैक्स के कुछ अन्य तरीकों से भी राजकोषीय घाटे को पूरा करने की कोशिश कर सकती है। जिसका बोझ आखिर में आम जनता को उठाना पड़ सकता है।
ऐसा इसलिए, क्योंकि देश का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर जीडीपी का 4.6 प्रतिशत हो गया है, जो कि सात साल का उच्चतम स्तर है। इससे पहले वित्त वर्ष 2012-13 में राजकोषीय घाटा 4.9 प्रतिशत था। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए मोदी सरकार ने 3.8 प्रतिशत राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया था। अब जो आंकड़े सामने आए हैं, वो साफ तौर पर सरकार के अनुमान से कहीं ज्यादा हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए आम जनता पर सरकार बोझ डालेगी।
वैसे सरकार का तर्क है कि राजकोषीय घाटे को 3.3 प्रतिशत तक सीमित रखा जा सकता था, लेकिन किसानों के लिए 20,000 करोड़ रुपए की किसान सम्मान निधि योजना से यह बढ़ा है। बता दें कि वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा ही नहीं, बल्कि राजस्व घाटा भी अनुमान से ज़्यादा रहा है। वित्त वर्ष 2019-20 में राजस्व घाटा जीडीपी का 3.27 प्रतिशत रहा है, जो कि सरकार के 2.4 प्रतिशत के अनुमान से काफी ज्यादा है।
दरअसल, मुख्य रूप से राजस्व संग्रह कम होने से राजकोषीय घाटा बढ़ा है। और अब राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार क़र्ज़ लेगी और फिर उसे ब्याज समेत चुकाएगी। स्वाभाविक है कि राजकोषीय घाटे का आखिरकार यह पूरा बोझ आम जनता पर ही पड़ेगा। अब जबकि लॉकडाउन के कारण देश में करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई है और लोग आर्थिक संकट में हैं, ऐसे में यदि सरकार राजकोषीय घाटा पूरा करने के लिए आम जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ाती है, तो इससे मध्यम वर्ग को सबसे ज़्यादा मुसीबतें झेलनी पड़ सकती हैं।